Makar Sankranti Know Interesting Facts How It Is Celebrated Across India
भारत, एक देश जहां हर दिन ईद और हर दिन दिवाली होती है। एक ऐसा देश जहां अनेकात में भी एकता है। विविधताओं से भरे इस देश में अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार नए साल के शुरूआत से ही त्यौहारों का आगमन भी हो जाता है। और इन सभी त्यौहारों को धूमधाम से मनाने के लिए भारतीयों को बस मौका चाहिए।
तो यही मौका आ चुका है मंकर संक्रांति के रूप में। लेकिन क्या प्रचीन काल से ही मकर संक्रांति को मनाया जा रहा है, भारत में ही क्यों मनाया जाता है यह पर्व, इस पर्व का महत्व है और यह आज इतना क्यों महत्वपूर्ण है। इन सभी सवालों के जवाब देते हुए हम आगे बढ़ेगे।
साल के पहले महिने में यानि 15 जनवरी को देश भर में इस पर्व को अलग अलग नाम के साथ मनाया जाता है। खास बात तो यह है कि यह पर्व धर्म, ज्योतिष और वैज्ञानिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान किया जाता है और दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है।
मकर संक्रांति के पर्व को मनाने का धार्मिक और ज्योतिषीय, कारण दोनों से जुड़ा हुआ है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर अपने शत्रु ग्रह शनि की राशि मकर में प्रवेश करता है तो उस समय मकर संक्रांति के पर्व को देश भर में मनाया जाता है। इसके साथ ही सूर्य ग्रह दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर आता है। सूर्य की यह स्थिति ज्योतिष के अनुसार बेहद शुभ मानी गई है। जबकि धार्मिक नजरिए के अनुसार इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी छोड़कर उनके घर मिलने आते हैं। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति का दिन ही चुना था।
मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। यही मुख्य कारण है कि इस दिन मकर संक्रांति के पर्व को मनाया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नजर डाली जाए तो इस दिन से भारत देश में ऋतु में परिवर्तन होने प्रारंभ होने लगती है। शरद ऋतु अलविदा कहती है और बसंत ऋतु का आगमन शुरू हो जाता है। यही कारण है कि पहले के मुकाबले दिन लंबे होने लगते हैं और रातें छोटी। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मकर संक्रांति के शुभ पर्व के दिन जो व्यक्ति पवित्र नदी में स्नान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है इतना ही नहीं इस दिन दान धर्म का कार्य करने से भी मुनष्य को पुण्यफल के साथ साथ सुख समृद्धि की प्राप्ती होती है।
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रामचरितमानस में तुलसीदास ने भी इस बात को बताया है कि शिष्य ऋतु में सूर्य देव के दर्शन के लिए मकर संक्रांति का दिन सबसे शुभ है। इतना ही नहीं इसी दिन दिव्यलोक में देवताओं का दिन भी शुरु होता है। देवताओं के दिन को उत्तरायण काल और दक्षिणायन को रात माना जाता है। इस बार मकर संक्रांति मनाने के लिए महत्वपूर्ण समय कुछ इस तरह रहेगा-
मकर संक्रांति तिथि- 15 जनवरी 2020
शुभ मुहूर्त- सुबह 7 बजकर 19 मिनट तक
पुण्यकाल मुहूर्त- सुबह 7 बजकर 19 मिनट से दोपहर 12 बजकर 31 मिनट तक
महापुण्यकाल मुहूर्त- सुबह 7 बजकर 19 मिनट से सुबह 9 बजकर 3 मिनट तक
मुहुर्त की कुल अवधि- एक घंटा 45 मिनट
संक्रांति स्नान- प्रात काल
आपको बता दें कि एक वर्ष में 12 संक्रांतियां होती है जिसमें से 6 संक्रांतियां उत्तरायण और 6 दक्षिणायन की संक्रांति के नाम से जानी जाती है।
कहा यह भी जाता है कि सूर्य देव अपनी गति से प्रत्येक वर्ष मेष से मीन 12 राशियों में 360 अंश की परिक्रमा करते है। इतना ही नहीं सूर्य देव एक राशि में 30 अंश का भोग कर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। सरल शब्दों में कहा जाए तो प्रत्येक राशि में एक माह तक स्थान ग्रहण करते है।
हिन्दु पंचाग की मान्यता के अनुसार जब सूर्य सभी 12 राशियों का परिक्रमा पूरी कर लेते है तो एक संवत्सर यानि की एक साल पूरा होता है। श्रीकृष्ण ने भी मकर संक्रांति का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि जब सूर्य उत्तरायन में होते है और पृथ्वी प्रकाश से भरी हुई होती है तो उस 6 माह के शुभ समय में इस शरीर का त्याग करने से जीव का पुनर्जन्म नहीं होता। लेकिन जब सूर्य दक्षिणायन होता है तब पृथ्वी पर अंधकार होता है ऐसे में शरीर का त्याग करने से जीव को पुनर्जन्म लेना पडता है। गीता के अलावा मकर संक्रांति को लेकर विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि मकर संक्रांति के दिन पितरों की आत्मा की शांति, स्वास्थ्य और सबके सुख समृद्धि के लिए तिल के छः प्रयोग बहुत ही पुण्यदायक और फल प्रदान करने वाले माने गए हैं।
भारत में मकर संक्रांति कई रूपों में मनाई जाती है। पंजाब और हरियाणा में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन रात होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के को आग में डाला जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं। नई बहू और नवजात बच्चों के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व होता है।
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उत्तर प्रदेश में इसे दान का पर्व माना जाता है। प्रयागराज में संगम पर हर साल एक महीने तक माघ मेला लगता है। उत्तर भारत में 14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक पूरे एक महीने किसी भी अच्छे काम को नहीं किया जाता। मकर संक्रांति से अच्छे दिनों और कामों की शुरुआत होती है। इस दिन माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रांति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। बिहार में इस पर्व को खिचड़ी के नाम से मनाया जाता है। जबकि महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें दूसरी सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं।
बंगाल में इस पावन पर्व पर स्नान के बाद तिल दान करना शुभ माना जाता है। यहां गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मान्यता है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है। तमिलनाडु में इस पर्व को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। पहले दिन भोगी-पोंगल, दूसरे दिन सूर्य-पोंगल, तीसरे दिन मट्टू-पोंगल या फिर केनू-पोंगल और चौथे दिन कन्या-पोंगल। पहले दिन कूड़ा करकट को इकठ्ठा करके जलाया जाता है तो वहीं दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा होती है। तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। इसके बाद सूर्य को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। खास बात यह है कि इस दिन बेटी और दामाद का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।
असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू और भोगाली-बिहू के नाम से एक साथ मनाया जाता है। तो वहीं राजस्थान में इस दिन सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। इस तरह से मकर संक्रांति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में पाई जाती है।
मकर संक्रांति को भारत के राज्यों में अलग अलग नाम से मनाया जाता है। जैसे गोवा, ओड़ीसा, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखण्ड, तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, मणिपुर, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखण्ड, गुजरात, जम्मू, बिहार, और पश्चिम बंगाल में इसे मकर संक्रांति के नाम से मनाया जाता है। जबकि ताइ पोंगल और उझवर तिरुनल नाम से तमिलनाडु में उत्सव का आनंद लिया जाता है। इसे गुजरात और उत्तराखण्ड में उत्तरायण के नाम से मनाया जाता है। माघी के नाम से हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में इसे लोग बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। असम में भोगाली बिहु, कश्मीर घाटी में शिशुर सेंक्रात, पश्चिमी बिहार और उत्तर प्रदेश में खिचड़ी, पश्चिम बंगाल में पौष संक्रान्ति, कर्नाटक में मकर संक्रमण और पंजाब में लोहड़ी के नाम से इस पर्व को बड़े ही जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
मकर संक्रांति को केवल भारत में ही नहीं बल्कि भारके के बाहर भी कई देशों में मनाया जाता है। बांग्लादेश में इसे पौष संक्रांति, नेपाल में माघे संक्रान्ति या फिर माघी संक्रांति और खिचड़ी संक्रांति के नाम से मनाया जाता है। इसके अलावा थाईलैण्ड में इसे सोंगकरन, लाओस में पि मा लाओ, म्यांमार में थिंयान, कम्बोडिया में इसे मोहा संगक्रान और श्रीलंका में पोंगल तथा उझवर तिरुनल के नाम से मनाया जाता है। नेपाल में मकर संक्रांतिक को सभी राज्यों में भारत की तरह की अलग-अलग नाम और रीति रिवाजों के साथ भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिए ईष्ट देव को धन्यवाद देकर अपनी आस्था का परिचय देते हैं। इसलिए मकर संक्रांति के त्यौहार को फसलों एवं किसानों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है। नेपाल में मकर संक्रान्ति को माघे-संक्रान्ति, सूर्योत्तरायण और थारू समुदाय में माघी के नाम से जाना जाता है। थारू समुदाय का तो यह सबसे प्रमुख त्यैाहार माना जाता है। वहां पर भी तीर्थस्थल में स्नान कर दान करते हैं। तीर्थस्थलों में रूरूधाम और त्रिवेणी मेला सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है।
भारत देश के साथ साथ इस पर्व को बड़े ही उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने के लिए सभी लोग इसकी तैयारी जोरो शोरो के साथ करते हैं। और अब इस पर्व की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। बस अब इंतजार है तो इस पर्व को एक बार फिर सबके साथ मिलकर धूमधाम से मनाने का।
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