What is CAB? Know Everything About It
नागरिकता संशोधन कानून (CAB) को लेकर देश भर में इस समय हंगामा मचा हुआ है। जहां एक ओर इसके समर्थक इसे ऐतिहासिक कदम बता रहे हैं वहीं दूसरी ओर इसके विरोध में मुस्लिम संगठन के साथ साथ कई कॉलेज कैंपसों में छात्रों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है।
देश भर में
विरोध इस कदर किया जा रहा है कि कई जगह इसे लेकर सरकार को इंटरनेट तक बंद करना पड़
रहा है। विपक्ष और छात्रों के निशाने पर इस कानून को किसी भी किमत पर स्वीकार नहीं
करने का मन है। देश भर में इस कानून के खिलाफ कई अफवाएं तक लोगों के बीच सोशल
मीडिया के माध्यम से फैलाई जा रही है। ऐसे में हम आपको इसकी ए से लेकर जेड तक की
सारी जानकारी देने जा रहे हैं। आइए जानते हैं क्या है सीएए
क्या है
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए)
नागरिकता
संशोधन कानून यानी सीएए CAA को अंग्रेजी
में Citizenship Amendment Act के
नाम से जाना जाता है। सीएए तहत अब पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश
में धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से भागकर आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन
और बौद्ध धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी।
इसमें कौन से
धर्म है शामिल?
सीएए में
पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के छह
समुदायों को जगह दी गई है। इसमें हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध
और पारसी समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है।
हालांकि इस सभी प्रताड़ित लोगों को तभी भारतीय नागरिकता तब मिलेगी जब वे 31 दिसंबर, 2014
को या उससे पहले भारत में प्रवेश कर गए हों।
मुसलमानों
क्यों बाहर रखा गया?
इस नए कानून
में मुसलमानों को बाहर रखा गया है। अमित शाह ने नागरिकता संशोधन कानून को लेकर
संसद इस बात को बताया था कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान
और बांग्लादेश मुस्लिम देश हैं। वहां धर्म के नाम पर बहुसंख्यक मुस्लिमों को
परेशान नहीं किया जाता जबकि इन देशों में
हिंदुओं समेत अन्य समुदाय के लोगों को धर्म के आधार पर उत्पीड़न किया जाता है। यही
कारण है इन देश के मुस्लिमों को नागरिकता कानून में जगह नहीं दी गई।
दोनों सदनों में पास कराना जरूरी
सैंविधानिक संसदीय नियम के अनुसार यदि कोई विधेयक लोकसभा में पास हो जाता है और किसी भी कारण राज्य सभा में पास नहीं हो पाता या फिर लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो जाता है तो वह विधेयक निष्प्रभावी हो जाता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो इस स्थिति में कोई भी शून्य हो जाता है और उसे फिर से नए सिरे से दोनों सदनों में पास कराना अनिवार्य होता है। लेकिन दूसरी ओर राज्य सभा से संबंधित नियम कुछ अलग है। यदि कोई विधेयक राज्य सभा में रुका हुआ हो और वह लोकसभा से भी पास नहीं हो पाता और इसी दौरान किसी कारणवश लोकसभा भंग हो जाती है तो ऐसे में वह विधेयक निष्प्रभावी नहीं होता। अब क्योंकि यह विधेयक राज्यसभा से पास नहीं हो पाया था और इसी दौरान 16वीं लोकसभा का कार्यकाल भी समाप्त हो गया था तो इस स्थिति में इस विधेयक को एक बार फिर से नए सिरे से विधेयक को दोनों सदन में पास कराना होगा। दोनों सदनों में विधेयक पास होने के बाद इस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक एक नया का रूप ले लेगा।
आखिर क्या है विवाद
इस कानून को लेकर देशभर में इसका विरोध किया जा रहा है। जोकि कड़ाके की सर्दी में अभी तक जारी है। जहां एक ओर लोग इसका विरोध कर रहे हैं ऐसे में विपक्ष ने भी अपना बड़ा विरोध जताते हुए इस बात को मुख्य रूप से निशाना बनाया कि इसमें मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया है। विपक्ष का तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो समानता के अधिकार की बात करता है। और यह कानून लागू होने के बाद यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है जोकि सही नहीं है।
पूर्वोत्तर में होगी परेशानी
इस कानून के लागू होने के बाद भारत के एक विशेष द्रर्जे पर इसका प्रभाव होगा। असल में भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में रहने वाले एक बड़े वर्ग का कहना है कि यदि नागरिकता संशोधन कानून 2019 को लागू किया जाता है तो पूर्वोत्तर के मूल लोगों के सामने पहचान और आजीविका का संकट पैदा हो जाएगा। ऐसे में यह कानून लागू करना किसी भी तरह से सही नहीं है जो किसी को भी परेशानी में डालें।
असल में भारतीय जनता पार्टी ने साल 2014 के
अपने चुनावी घोषणापत्र में धार्मिक अत्याचार से ग्रस्त हो चुके हिंदू शरणार्थियों के लिए एक घर
प्रदान करने की बात को घोषणा पत्र में जोड़ा था। बता दें कि इस तरह के लोग उस समय
सामने आए जब साल 2015 में मीडिया में इन
लोगों को लकर खबरें आईं थीं। इसके बाद भारत सरकार द्वारा ऐसे शरणार्थियों को उनके
यात्रा संबंधी दस्तावेजों की बैगर जांच पड़ताल की परवाह किए बिना और उन्हें
दीर्घकालिक वीजा देने के आदेश सरकार द्वारा पारित कर दिया गया। भारतीय इंटेलिजेंस
ब्यूरो की माने तो तीस हजार से भी अधिक प्रवासी इस सुविधा का लाभ ले चुके हैं।
लेकिन अब संशोधित नागरिकता अधिनियम के तहत इन सभी प्रवासियों को तत्काल लाभार्थी
होने की उम्मीद लगाएं बैठे हैं।
कौन है अवैध प्रवासी?
नागरिकता कानून 1955 के अनुसार अवैध
प्रवासियों को भारतीय नागरिकता नहीं मिल सकती। इस कानून के अंदर उन सभी लोगों को
अवैध प्रवासी माना गया है जो भारत में वैध यात्रा दस्तावेज जैसे पासपोर्ट और वीजा
के बगैर प्रेवश कर चुके हों या फिर वह लोग जो वैध दस्तावेज के साथ तो भारत में आए
हों लेकिन उसमें तय सीमा से अधिक समय तक भारत में ही रुक गए हो।
अवैध प्रवासियों का क्या होगा
जो लोग इस विधेयक के अऩुसार अवैध पाए जाएंगे उन्हें सरकार द्वारा या तो जेल
में रखा जा सकता है या फिर विदेशी अधिनियम 1946 और
पासपोर्ट अधिनियम 1920 के तहत वापस उनको उनके
देश भेजा जा सकता है। लेकिन अब केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 और 2016 में उपरोक्त 1946 और 1920 के कानूनों में संशोधन
कर पड़ोसी तीन देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश और
पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हो कर आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन को
भारत में आने की छूट प्रदान कर दी है। लेकिन इसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि
यदि इन सभी समुदायों अथवा धर्मों से संबंध रखने वाले लोग अगर भारत की सीमा में अवैध
दस्तावेजों के साथ भारत में रहते हैं तो उनको न तो जेल में डाला जा सकता है और न
उनको देश से निकाला जा सकता है। लेकिन यह नियम केवले उन्हीं लोगों पर लागू होता है
जो 31 दिसंबर, 2014 को
या उससे पहले ही भारत में पहुंचे हैं। बता दें कि मुख्य रूप से इन्हीं धार्मिक
समूहों को ध्यान में रखकर इन सभी धर्मों से संबंध रखने वाले लोगों को भारत की
नागरिकता देने के लिए नागरिकता कानून, 1955 में
संशोधन के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 भारतीय
संसद में पेश किया गया था।
विधेयक का क्या हुआ?
आपको बता दें कि इस विधेयक को अब से तीन साल पहले 19 जुलाई 2016 को
लोकसभा में पेश किया गया था। इसके बाद इस विधेयक को अगले महीने यानी 12 अगस्त 2016 को
इसे संयुक्त संसदीय कमिटी के पास भेजा गया। कमिटी ने इस पर तीन साल बाद 7 जनवरी, 2019 को
अपनी रिपोर्ट जमा कि। कमिटी के रिपोर्ट सौंपने के बाद उसे अगले दिन 8 जनवरी 2019 को
विधेयक को लोकसभा में बहुतत के साथ पास किया गया। लोकसभा में पास होने के बाद राज्य
सभा में यह विधेयक पेश नहीं हो पाया था। लेकिन अब सरकार एक बार फिर से इस विधेयक
को शीतकालीन सत्र में नए सिरे से पेश करने की तैयारी में है। संसद के दोनों सदनों
से पास होने के बाद यह विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के बाद कानून बन जाएगा
जो देश भर मे लाग होगा।
दोनों सदनों में पास कराना जरूरी
सैंविधानिक संसदीय नियम के अनुसार यदि कोई विधेयक लोकसभा में पास हो जाता है और किसी भी कारण राज्य सभा में पास नहीं हो पाता या फिर लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो जाता है तो वह विधेयक निष्प्रभावी हो जाता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो इस स्थिति में कोई भी शून्य हो जाता है और उसे फिर से नए सिरे से दोनों सदनों में पास कराना अनिवार्य होता है। लेकिन दूसरी ओर राज्य सभा से संबंधित नियम कुछ अलग है। यदि कोई विधेयक राज्य सभा में रुका हुआ हो और वह लोकसभा से भी पास नहीं हो पाता और इसी दौरान किसी कारणवश लोकसभा भंग हो जाती है तो ऐसे में वह विधेयक निष्प्रभावी नहीं होता। अब क्योंकि यह विधेयक राज्यसभा से पास नहीं हो पाया था और इसी दौरान 16वीं लोकसभा का कार्यकाल भी समाप्त हो गया था तो इस स्थिति में इस विधेयक को एक बार फिर से नए सिरे से विधेयक को दोनों सदन में पास कराना होगा। दोनों सदनों में विधेयक पास होने के बाद इस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक एक नया का रूप ले लेगा।
आखिर क्या है विवाद
इस कानून को लेकर देशभर में इसका विरोध किया जा रहा है। जोकि कड़ाके की सर्दी में अभी तक जारी है। जहां एक ओर लोग इसका विरोध कर रहे हैं ऐसे में विपक्ष ने भी अपना बड़ा विरोध जताते हुए इस बात को मुख्य रूप से निशाना बनाया कि इसमें मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया है। विपक्ष का तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो समानता के अधिकार की बात करता है। और यह कानून लागू होने के बाद यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है जोकि सही नहीं है।
पूर्वोत्तर में होगी परेशानी
इस कानून के लागू होने के बाद भारत के एक विशेष द्रर्जे पर इसका प्रभाव होगा। असल में भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में रहने वाले एक बड़े वर्ग का कहना है कि यदि नागरिकता संशोधन कानून 2019 को लागू किया जाता है तो पूर्वोत्तर के मूल लोगों के सामने पहचान और आजीविका का संकट पैदा हो जाएगा। ऐसे में यह कानून लागू करना किसी भी तरह से सही नहीं है जो किसी को भी परेशानी में डालें।
देश के छात्र कर रहे प्रदर्शन
सीएए को लेकर देशभर में सरकार के खिलाफ जोरदान प्रदर्शन किया जा रहा है।
देश की राजधानी दिल्ली में स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के
छात्रों द्वारा इस पर विरोध जारी है। दिल्ली यूनिवर्सिटी सहित देश के कई कॉलेज
इसका विरोध जता रहे हैं। छात्र और पुलिस इस पर आमने सामने है। सभी छात्रों का कहना
है कि यदि यह कानून लागू होता है तो यह ठिक नहीं होगा। आलम तो यह है कि छात्रों
द्वारा सरकार के अपनी मनमानी कर रही है और आए दिन अपने अनुसार एक नया कदम उठा लेती
है। जिसका असर पूरे देश पर होता है।
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